मटका या फ्रीज... गर्मी में किसका पानी सेहतमंद, फायदा जान तुरंत दौडेंगे बाजार!

मटका हमारी संस्कृति का हिस्सा है

मटका या फ्रीज... गर्मी में किसका पानी सेहतमंद, फायदा जान तुरंत दौडेंगे बाजार!

इस वक्त दिल्ली सहित समूचे उत्तर भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है. राजधानी में तो तापमान 47 से 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. ऐसे में इस वक्त हर किसी का प्राण ठंडे पानी में अटका रहता है. शहरीकरण और भागदौड़ की जिंदगी में पानी को ठंडा करने का सबसे आसान तरीका फ्रीज है. लेकिन, आज भी एक बड़ा तबका मटके का पानी पीना पसंद करता है. ऐसे में हम आज आपके साथ मटके और फ्रीज… इनमें से किसका पानी सेहत के लिए बेहतर होता है, इसको लेकर चर्चा करते हैं.

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मटका हमारी संस्कृति का हिस्सा है. जब देश-दुनिया में बिजली नहीं थी और फ्रीज का आविष्कार नहीं हुआ था तब भीषण गर्मी में पानी को ठंडा करने का एक ही विकल्प था मटका. लेकिन, विकास के दौड़ में बिजली और घर-घर फ्रीज के पहुंचने की वजह से मटके की मांग कम हो गई. लोग ठंडे पानी के लिए फ्रीज पर निर्भर हो गए. लेकिन, हम सभी को पता है कि हमारी परंपरा काफी समृद्ध रही है. परंपरागत और नेचुरल चीजों की बात ही अलग है. ऐसे में निश्चिततौर पर मटके का पानी, फ्रीज की तुलना में ज्यादा सेहतमंद होता है.

प्राकृतिक रूप से ठंडा
किसी भी चीज में जब नेचुरल शब्द जुड़ जाता है तो फिर उससे बेहतर कुछ नहीं होता. मटका में पानी नेचुरल तरीके से ठंडा होता है. दरअसल, मटका में पानी ठंडा होने की जो प्रक्रिया है उसके पीछे साइंस के वाष्पीकरण (evaporation) का सिद्धांत काम करता है. इसके साथ ही मटके के पानी का स्वाद भी बदल जाता है. ऐसा इसलिए होता हैं क्योंकि मिट्टी में मौजूद मिनरल के अंश पानी में घुल जाते हैं.

अल्कालाइन बैलेंस
मटके की एक खासियत यह है कि इसमें पानी अपने-आप अल्कालाइन यानी क्षारीय हो जाता है. मिट्टी में मौजूद कैल्शियम, मैगनेशियम और पोटैशियम के अंश पानी में घुलने की वजह से ऐसा होता है. आयुर्वेद में अल्कालाइन वाटर को पेट के लिए बेहद कारगर बताया गया है. इसे लीवर और किडनी के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है. इससे कब्ज नहीं बनता और पाचन बेहतर होता है. मिट्टी के इस बर्तन से पानी में pH का बैलेंस भी बना रहता है, जिससे बॉडी में नेचुरल तरीके से डिटॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया होती है. pH का मतलब पानी में अम्ल और क्षार का स्तर होता है.

भरपूर पोषक तत्व
मिट्टी के बर्तन की वजह से पानी में पोषक तत्व बना रहता है. इतना ही नहीं प्लास्टिक या मेटल के बर्तन की तरह मटके से कोई हानिकारक तत्व रिलीज नहीं होता. इस कारण मटके में पानी की प्राकृतिक शुद्धता बनी रहती है. ऐसे में जब आप मटके का पानी पीते हैं तो आप उसका 100 फीसदी प्राकृतिक लाभ लेते हैं.

प्राकृतिक समाधान
मटका, पानी ठंडा करने का एक प्राकृतिक तरीका है. प्लास्टिक या मेटल के बोतल की तुलना में यह पूरी तरह इको-फ्रेंडली है. इससे प्रकृति को कोई नुकसान नहीं होता है. दूसरी तरफ प्लास्टिक और मेटल के बर्तन से सीधे तौर पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है.

सांस्कृतिक पहचान
मिट्टी के बर्तन हमारी परंपरा के हिस्सा हैं. इसे बनाना एक हुनर है. इससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है. साथ ही हम इसके जरिए हजारों साल पुरानी अपनी परंपरा और ज्ञान को आगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं.

सावधानी
मटके के तमाम फायदे जानने के बावजूद हमें कुछ सावधानियां भी बरतनी चाहिए. हमें बाजार से अच्छी मिट्टी से बने मटके खरीदने चाहिए. हालांकि, इसकी पहचान करना एक मुश्किल काम है. कई इलाकों में मिट्टी भी प्रदूषित हो गई है, ऐसे में अगर प्रदूषित मिट्टी से मटका बनाया गया होगा तो उससे पानी भी खराब हो सकता है. साथ ही मटके की साफ-सफाई भी जरूरी है. मटके की पेंदी में हमेशा नमी रहती है. इस कारण उसमें फंगस लगने की आशंका रहती है.

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