एक्टर-डायरेक्टर मनोज कुमार का 87 की उम्र में निधन

एक्टर-डायरेक्टर मनोज कुमार का 87 की उम्र में निधन

दशकों तक बॉलीवुड में अलग-अलग किरदारों से अपनी छाप छोड़ने वाले दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार को देश नम आंखों से विदा कर रहा है। उन्हें भारत पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। उनकी रोटी कपड़ा और मकान, पूरब और पश्चिम, उपकार और क्रांति जैसी फिल्में हमेशा लोगों के बीच मौजूद रहेगी। उन्होंने 87 साल की उम्र में मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में अंतिम सांस ली। अस्पताल की ओर से अभिनेता की मौत का ऑफिशियल स्टेटमेंट भी जारी किया जा चुका है। ऑफिशियल स्टेटमेंट में वरिष्ठ अभिनेता श्री मनोज कुमार जी का आज सुबह करीब 3:30 बजे कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में उम्र संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण निधन हो गया। इस कारण ही वे पिछले कुछ सप्ताह से अस्पताल में भर्ती थे। आइए जानते हैं उम्र बढ़ने पर क्यों बढ़ जाती हैं सांस से जुड़ी समस्याएं।

अभिनेता मनोज कुमार दिल की बीमारी से भी पीड़ित बताए जा रहे हैं। हालांकि, उम्र ज्यादा बढ़ने से भी सांस लेने में तकलीफ होती है। 75 साल के बाद ऐसी समस्याएं लोगों में होना आम है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि उम्र ज्यादा होने पर दिल और ब्लड वेसल्स में बदलाव होना। ये सभी फैक्टर्स दिल की बीमारियों का कारण बनते हैं।

बंटवारे का दर्द
1947 के विभाजन के दौरान उनका परिवार पाकिस्तान से दिल्ली आ गया, जहां उन्होंने आर्थिक और मानसिक संघर्षों का सामना किया। इस दौरान उन्होंने अपने छोटे भाई को खो दिया।

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फिल्मों में एंट्री 
1957 में ‘फैशन’ फिल्म से उन्होंने अभिनय की शुरुआत की, लेकिन कोई खास पहचान नहीं मिली। शुरुआती दिनों में उन्होंने घोस्टराइटिंग भी की, जिसके लिए उन्हें 11 रुपये प्रति सीन मिलते थे।

देशभक्ति की छवि
1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उनसे ‘जय जवान, जय किसान’ पर फिल्म बनाने को कहा, जिससे 1967 में ‘उपकार’ बनी और उन्होंने ‘भारत कुमार’ की उपाधि पाई।

मनोज कुमार की फेमस फिल्में
‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘क्रांति’ जैसी फिल्मों ने उन्हें अपार लोकप्रियता दिलाई।

पाकिस्तानी कलाकारों को मौका
1989 में जब भारत-पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण थे, तब भी उन्होंने फिल्म ‘क्लर्क’ में पाकिस्तानी कलाकार मोहम्मद अली और जेबा को कास्ट किया।

करियर का उतार-चढ़ाव
‘क्रांति’ के बाद उनका करियर धीमा हो गया और 1995 में ‘मैदान-ए-जंग’ के बाद उन्होंने अभिनय छोड़ दिया।

डायरेक्टर के आखिरी दर्शन 
1999 में उन्होंने अपने बेटे कुणाल गोस्वामी के साथ फिल्म ‘जय हिंद’ का निर्देशन किया, जो उनकी आखिरी फिल्म थी।

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सम्मान और पुरस्कार
1992 में उन्हें पद्मश्री और 2015 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जब वो पुरस्कार लेने पहुंचे, तो दर्शकों ने खड़े होकर तालियों से उनका स्वागत किया।

परिवार और विरासत
वो अपनी पत्नी शशि गोस्वामी और दो बेटों कुणाल और विशाल गोस्वामी को छोड़ गए। उनकी देशभक्ति से भरी फिल्में उन्हें सिनेमा जगत में अमर बनाए रखेंगी।

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